वो Fake सा काम , वो Fake सी मुस्कान;
सब Fake ही तो था !
जब पहुंचे वहां तो एक और सपना पकड़ा दिया;
कहा अभी नहीं मिलेगा कुछ, अभी तक तुमने किया ही क्या है,
जैसे तैसे वहां से निकले , एक और डिग्री की रेस में जकड़े;
हर रोज़ एक झूठ का सहारा पकड़े, हम अपने ही सच से
पता नहीं कहाँ भटके;
ये Fake सिर्फ़ अब शब्द नहीं सच था हमारा,
वही एक हकीकत थी, उसी का था सहारा ;
Fake सी Smile लिए रोज़ उस क्लास की खिड़की से
उस झूठे सपनो की दुनिया को देखते थे हम,
सोचा जब निकलेंगे इस खिड़की से, तो हर कामयाबी की दरवाज़े खोल देंगे हम ;
यही था वो दिखाया गया हमें वो Fake सा सपना !
जब मिली वो सपनो की नौकरी, पैसों की जब मिली झलकार ,तो कुछ देर तो मुस्कुराये
पर फिर ओढ़ दिया किसी ने नाखुशी का काला कपड़ा;
इतने बरस बीत गए वो मक़ाम नहीं मिल पाया ,
जहाँ बोलते थे किस सुकून ही सुकून है, वो जहान नहीं मिल पाया ;
हर रोज़ लैपटॉप के बोझ तले हम चलते रहे सिर झुकाकर,
एक Fake सा दिलासा लिए अपने कदमो को उस और बढ़ाकर ;
पर कुछ बरस बाद हुआ कुछ ऐसा, ना उम्मीद किसी को जिसकी
ना आभास भर था हुआ वैसा ;
रुक गयी दुनिया , झुक गया था पैसा, जिसपे यकीन था सबको
वो भी बचा ना पाया प्रलय आया था वैसा ;
महामारी की अफरा तफ़री छायी थी,
साथ कई ढेर मकबरे और चिताएँ लायी थी ;
सब बस पत्तों की तरह बिखर रहा था, अपने अंधे घमंड में चूर इंसान
आज पहली बार इतना बेबस हुआ था;
कुछ काम नहीं था आ रहा,
पैसे वाला या गरीब, एक सी मौत था पा रहा;
सब व्यापारों पर ताला लगा था ,
सपनो की उस नौकरी से कइयों को निकाला जा रहा था;
क्या इतनी हलकी थी दुनिया ये अपनी जो इस झोंके भर से भिखर गयी थी ,
या पहले से हलकी थे ये , जिसकी खबर बस हमें हुई अभी थी ;
Fake सी थी वो नौकरियां जहाँ घंटों बिताया करते थे ,
कुछ काम का था भी क्या काम वो, जिसे कभी नाज़ से बताया करते थे;
क्या हम सच में कुछ काम का करते भी थे,
जिसके हमें कुछ पैसे तब मिलते भी थे ;
या झूठ था वो सब कुछ जो बोला था उस बचपन में हमसे,
"कि बस थोड़ी मेहनत और करके तो देखो ,वो सुकून की दुनिया अब दूर नहीं है"
कहता है दिल किस अब दिल की ही सुन, थक चुके अब,
बस और नहीं होता, "वो Fake सा काम, वो Fake सी मुस्कान"